हिंदू धर्म में, भगवान शिव एक सर्वोच्च देवता हैं, जिनके बारे में सदियों से अनगिनत सवाल उठते रहे हैं। उनकी छवि एक रहस्यमयी योगी से लेकर जंगली नाचने वाले नटराज तक, एक दयालु पारिवारिक व्यक्ति से लेकर भयंकर रुद्र तक विविध रूपों में दिखाई देती है। तो आखिर कौन हैं शिव?
एक से अनेक रूप:
शिव को अनेक नामों से पुकारा जाता है -
शंकर : सबका कल्याण करने वाले,
भोलेनाथ : भक्तों पर आसानी से रिजने वाले ,
महादेव : देवों के भी देव ,
विष्णुवल्लभ : भगवान विष्णु के अति प्रिय ,
नटराज: तांडव नृत्य के प्रिय
त्रिलोकेश : तीनों लोगों के स्वामी ,
अर्धनारीश्वर : शिव और शक्ति के स्वरूप.
भूतपति :भूत-प्रेत का देवता
हर नाम उनके किसी अलग पहलू को दर्शाता है। वो सृष्टि के विनाशक और पुनर्निर्माणकर्ता दोनों हैं। वो परम ज्ञान के स्त्रोत और योग साधना के आदर्श हैं। वो परिवार के रक्षक और वैराग्य के प्रतीक भी हैं।
परम तत्व का प्रतीक:
कुछ के लिए, शिव परम तत्व का ही स्वरूप हैं। वो ब्रह्मांड के सारभूत सत्य, ब्रह्म का ही एक रूप हैं। इस दृष्टिकोण से, शिव निराकार, सर्वव्यापी और अनंत हैं। वो जीवन और मृत्यु, सुख और दुख, सृष्टि और विनाश के चक्र का संचालन करते हैं।
योगी और गुरु:
कुछ के लिए, शिव आदियोगी हैं, पहले योगी और आदिगुरु। वो कैलाश पर्वत पर तपस्या में लीन रहते हैं और योग के रहस्य को समझाते हैं। उनकी जटाएँ ज्ञान का प्रतीक हैं, उनका त्रिशूल अहंकार को भेदने का और उनका डमरू सृष्टि की ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है।
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निराकार का सार:
"नमामीशमीशान निर्वाणरूपम्।" यह मंत्र शिव के निराकार स्वरूप का वर्णन करता है। वे मोक्षस्वरूप हैं, व्यापक ब्रह्म हैं, ज्ञान के स्रोत हैं। वो किसी भी रूप, गुण या इच्छा से बंधे नहीं हैं। वे चेतन आकाश हैं, स्वयं प्रकाश हैं, और आकाश ही उनका वस्त्र है। शिव यही निराकार परम तत्व हैं, जिसकी अनुभूति ही मोक्ष का मार्ग है।
अलख अनादि अनंत:
शिव अनादि और अनंत हैं, उनकी कोई शुरुआत नहीं और कोई अंत नहीं। वे अखंड हैं, उनमें कोई भेद नहीं है। वे शुद्ध चेतना हैं, परम प्रकाश हैं, जिन्हें योगी और मुनि भी अपने ध्यान में नहीं पा सकते। शिव का यह अलख (अदृश्य) रूप ही उनके रहस्य का सार है
साकार का प्रेम:
हालाँकि शिव निराकार हैं, फिर भी उन्हें साकार रूप में भी पूजा जाता है। शिवलिंग उनकी निराकार शक्ति का प्रतीक है, जहाँ ध्यान लगाकर हम उनके सार तक पहुँच सकते हैं। वहीं दूसरी ओर, भगवान शंकर के रूप में उन्हें परिवारिक व्यक्ति, योगी, गुरु और रक्षक के रूप में भी देखा जाता है। भक्त उनके बालों में गंगा, उनके गले में विष, उनके हाथों में त्रिशूल और डमरू देखकर उनकी कृपा और शक्ति का अनुभव करते हैं।
अंततः, शिव कौन हैं, यह आपके विश्वास और दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
आपका शिव कैसा है?
शिव का निराकार स्वरूप ज्ञान और मोक्ष का मार्ग दिखाता है, जबकि उनका साकार रूप प्रेम और भक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। आप शिव को कैसे देखते हैं? क्या आपको उनका निराकार रूप अधिक आकर्षित करता है, या उनका साकार रूप आपके दिल को छूता है?
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भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ, इस बारे में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से कुछ प्रमुख कथाएं इस प्रकार हैं:
1. स्वयंभू:
कुछ पौराणिक ग्रंथों में शिव को स्वयंभू माना जाता है, यानी उनका जन्म किसी से नहीं हुआ, वे अनादि और अनंत हैं। वे स्वयं प्रकाश हैं और ब्रह्मांड के सृजन, पालन और संहार के लिए जिम्मेदार हैं।
2. लिंगोद्भव कथा:
इस के अनुसार जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी में स्वयं को श्रेष्ठ बताने को लेकर एक विवाद बहुत बढ़ गया तब भगवान शिव एक स्तंभ के रूप में दोनों के मध्य प्रकट हुए और दोनों को आदेश दिया किं ज़ो इस स्तंभ का छोड़ ढूंढ लेगा वही सबसे बड़ा कहलाएगा दोनों के कठिन प्रयास के बाद भी जब वह उसके अंत को ना ढूंढ सके तब असफल होकर लौटने पर उन्हें एहसास हुआ के संसार का संचालन एक सर्वोच्च शक्ति ज्योति रूप में कर रही है जिसे ही शिव कहा गया और इसी से त्रिदेव भगवान विष्णु, ब्रह्मा जी और शंकर जी की उत्पत्ति मानी गई है
3. शिव पुराण कथा:
शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव स्वयंभू हैं, यानी उनका जन्म किसी से नहीं हुआ। वे सृष्टि के आरंभ से ही विद्यमान हैं।
4. विष्णु पुराण कथा:
विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु के माथे से तेज का प्रकाश उत्पन्न हुआ, जिससे भगवान शिव की उत्पत्ति हुई।
निष्कर्ष:
शिव पुराण में शिव की उत्पत्ति के बारे में अनेक कथाएँ हैं, जो उनके विभिन्न रूपों और शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन कथाओं का सार यह है कि भगवान शिव सृष्टि के आदि और अंत हैं, वे सृष्टि के रचयिता, पालनकर्ता और विनाशकर्ता हैं।
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इस प्रश्न का कोई निश्चित उत्तर नहीं है। यह व्यक्तिगत विश्वास और दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। कुछ लोग भगवान विष्णु को बड़ा मानते हैं, कुछ लोग भगवान शिव को बड़ा मानते हैं.
भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों ही एक ही परम तत्व के दो रूप हैं। आइये समझते हैं
भगवान् विष्णु ही शिव स्वरूप है और भगवान शिव ही विष्णु के स्वरूप | भगवान शिव के हृदय में विष्णु निवास करते हैं और भगवान विष्णु के हृदय में शिव निवास करते हैं जो प्राणि इन दोनों में भेद नहीं करता वही सुखी है और जो इनमें भेद करता है वह पाप का भागी है ||
रामचरितमानस में भी प्रभु श्रीराम ने भगवान शिव के बारे में कहा है
भगवान श्री राम अपनी प्रजा से कहते है:
जो शिव से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पाता। शंकर से विमुख होकर (विरोध करके) जो मेरी भक्ति चाहता है, वह नरकगामी, मूर्ख और अल्पबुद्धि है।
रामचरितमानस की एक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम लंका पर आक्रमण करने जा रहे थे, तब उन्होंने समुद्र के किनारे शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा अर्चना की थी। शिव को भगवान राम अपना अराध्य देवता मानते हैं, इसीलिए युद्ध से पहले भगवान राम ने शिव की पूजा की। इसी को रामेश्वरम् कहा गया। जिसकी व्याख्या कुछ इस प्रकार से हुई.
निष्कर्ष यह है कि भक्ति में भेदभाव नहीं होना चाहिए। भक्त को सभी देवताओं को समान रूप से पूजना चाहिए और जो भी व्यक्ति इनमें भेद करता है वह निश्चित ही अल्पबुद्धि मूर्ख दुख का भागी होता है
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