होली हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है। बसंत ऋतु के आने के बाद से ही लोगों का इसके लिए बेताबी से इंतजार शुरू हो जाता है। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है, और अगले दिन होली मनाई जाती है। हिन्दू धर्म के अनुसार, होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। होली एक सांस्कृतिक, धार्मिक, और पारंपरिक त्योहार है। पूरे भारत में, इसका खास जश्न और उत्साह देखा जा सकता है। होली भाईचारे, आपसी प्रेम और सद्भावना का प्रतीक है। इस दिन लोग एक-दूसरे को रंगों में रंगते हैं, घरों में गुजिया और पकवान बनाए जाते हैं, और लोग एक-दूसरे के घर जाकर रंग-गुलाल लगाते हैं और होली की शुभकामनाएं देते हैं। इस साल होली की सही तारीख और शुभ मुहूर्त के बारे में जानने के लिए आइए हम देखें...
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल फाल्गुन पूर्णिमा 24 मार्च को सुबह 9:54 बजे से शुरू होकर 25 मार्च को दोपहर 12:29 बजे तक रहेगी. होलिका दहन 24 मार्च की रात को किया जाएगा. हालाँकि, उस दिन भद्रा काल भी पड़ रहा है. इसलिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 11:12 मिनट से 12:07 मिनट तक ही रहेगा.
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पूजा की तैयारी:
पूजा विधि:
महत्वपूर्ण बातें:
होलिका दहन पूजा बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हमें सदैव सत्य और धर्म का पालन करना चाहिए।
होली, रंगों का त्योहार, केवल खुशियों का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं भी हैं जो बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देती हैं। आइए होली से जुड़ी कुछ प्रमुख पौराणिक कथाओं पर नज़र डालें:
1. प्रह्लाद और होलिका:
यह सबसे प्रचलित कथा है जो भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उनकी दुष्ट चाची होलिका से जुड़ी है। हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद का पिता, अत्यंत क्रूर और घमंडी राजा था। वह चाहता था कि सभी लोग उसकी पूजा करें, लेकिन प्रह्लाद केवल भगवान विष्णु की भक्ति करते थे। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उनकी रक्षा की।
अंत में, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि से नहीं जलेगी। प्रह्लाद भगवान विष्णु का नाम जपते हुए होलिका की गोद में बैठ गए। आश्चर्यजनक रूप से, होलिका जल गई और प्रह्लाद बाल-बाल बच गए।
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2. कामदेव की तपस्या
शिवपुराण के अनुसार, हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह के लिए कठोर तपस्या कर रही थीं। उनके तप को देखकर शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र भी शिव-पार्वती के विवाह में स्वार्थपूर्ण इच्छाओं को छिपा रखा था, क्योंकि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इस कारण से इंद्र और अन्य देवताओं ने कामदेव को शिवजी की तपस्या को भंग करने के लिए भेजा। कामदेव ने शिव पर अपने 'पुष्प' वाण से प्रहार किया, जिससे शिव के मन में प्रेम और काम का संचार हो गया और उनकी समाधि भंग हो गई।
इस पर भगवान शिव ने क्रोधित होकर अपना तीसरा नेत्र खोला और कामदेव को भस्म कर दिया। उसके बाद, देवताओं ने शिवजी को पार्वती से विवाह के लिए मान लिया। कामदेव की पत्नी रति ने अपने पति के पुनर्जीवन का वरदान और शिवजी का पार्वती से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करने की खुशी में देवताओं ने इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया। इस प्रसंग के आधार पर, काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जलाकर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
3. राधा-कृष्ण और रंगों का त्योहार:
यह भी माना जाता है कि होली का त्योहार राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण राधा और गोपियों के साथ रंगों से खेलते थे।
4. राक्षस पूतना का वध:
यह कथा भगवान कृष्ण के बचपन से जुड़ी हुई है। पूतना नाम की एक राक्षसी थी जो कंस के कहने पर कृष्ण को मारने के लिए गई थी। उसने अपने स्तन में विष लगाकर कृष्ण को स्तनपान कराने का प्रयास किया, लेकिन कृष्ण ने उसे मार डाला। इस घटना की याद में भी होली का त्योहार मनाया जाता है
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